Antarvasna Story

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बहू की चुदाई

ठरकी ससुर प्यासी बहु और दर्दनाक चीखें part 1- Sasur Bahu ki Chudai

कोमल की शादी को दो साल हो चुके थे| बचपन से ही कोमल  बहुत खूबसूरत थी| 12 साल की उम्र में ही जिस्म खिलने लग गया था| सोलहवां साल लगते लगते तो कोमल  की जवानी पूरी तरह निखर आयी थी|

ऐसा लगता ही नहीं था की अभी दसवीं क्लास में पढ़ती है| स्कूल की स्कर्ट में उसकी भरी भरी जांघें लड़कों पे कहर ढाने लगी थी| स्कूल के लड़के स्कर्ट के नीचे से झाँक कर कोमल  की पैंटी की एक झलक पाने के लिए पागल रहते थे|

कभी कभार जब बास्केटबॉल खेलते हुए या कभी हवा के झोंके से कोमल  की स्कर्ट उठ जाती, तो किस्मत वालों को उसकी पैंटी के दर्शन हो जाते| लड़के तो लड़के स्कूल के टीचर भी कोमल  की जवानी के असर से नहीं बचे थे|

कोमल  के भारी नितंब पतली कमर और उभरती चूची देखके उनके सीने पे छुरियाँ चल जाती| कोमल  को भी अपनी जवानी पे नाज़ था| वो भी लोगों का दिल जलाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी|

उन्नीस साल की होते ही कोमल  की शादी हो गयी| कोमल  ने शादी तक अपने कुंवारे बदन को संभाल के रखा था| उसने सोच रखा था की उसका कुंवारा बदन ही उसके पति के लिए सुहागरात को एक अनमोल तोह्फा होगा|

सुहाग रात को पति का मोटा लंबा लंड देख कर कोमल  के होश उड़ गए थे| उस मोटे लंड ने कोमल  की कुंवारी चूत लहुलुहान कर दी थी| शादी के बाद कुछ दिन तो कोमल  का पति उसे रोज़ चार पांच बार चोदता था|

आईफोन के लिए कुंवारी चूत चुदवा ली- Kuwari Ladki Ki chudai

ठरकी ससुर प्यासी बहु और दर्दनाक चीखें part 1- Sasur Bahu ki Chudai

कोमल  भी एक लंबा मोटा लौड़ा पा कर बहुत खुश थी| लेकिन धीरे धीरे चुदाई कम होने लगी और शादी के एक साल बाद तो ये नौबत आ गयी थी, की महीने में मुश्किल से एक दो बार ही कोमल  की चुदाई होती| हालांकि कोमल  ने सुहागरात को अपने पति को अपनी कुंवारी चूत का तोहफा दिया था|

लेकिन वो बचपन से ही बहुत कामुक लड़की थी| बस किसी तरह अपनी वासना को कण्ट्रोल करके अपने स्कूल और कॉलेज के लड़कों और टीचर्स से शादी तक अपनी चूत को बचा के रखने में सफल हो गयी थी|

महीने में एक दो बार की चुदाई से कोमल  की वासना की प्यास कैसे बुझती उसे तो एक दिन में कम से कम तीन चार बार चुदाई की ज़रुरत थी|आखिकार जब कोमल  का पति जब तीन महीने के लिए टूर पे गया तो कोमल  के देवर ने उसके अकेलेपन का फायदा उठा कर उसकी वासना को तृप्त किया|

अब तो कोमल  का देवर राजू कोमल  को रोज़ चोदकर उसकी प्यास बुझाता था| एक दिन गाँव से टेलीग्राम आया की सास की तबियत कुछ खराब हो गयी है| कोमल  के ससुर एक बड़े ज़मींदार थे| गाँव में उनकी काफी खेती थी|

कोमल  का पति मोहन काम के कारण नहीं जा सकता था और देवर राजू का कॉलेज था| कोमल  को ही गाँव जाना पड़ा| वैसे भी वहां कोमल  की ही ज़रुरत थी जो सास और ससुर दोनों का ख्याल कर सके और सास की जगह घर को संभाल सके कोमल  शादी के फौरन बाद अपने ससुराल गयी थी|

सास ससुर की खूब सेवा करके कोमल  ने उन्हें खुश कर दिया था| कोमल  की खूबसूरती और भोलेपन से दोनों ही बहुत प्रभावित थे| कोमल  की सास रोमा  देवी तो उसकी प्रशंसा करते नहीं थकती थी|

दोनों इतनी सुंदर सुशील और मेहनती बहु से बहुत खुश थे| बात बात पे शर्मा जाने की अदा पे तो ससुर दीनदयाला फ़िदा थे| उन्होंने ख़ास कर कोमल  को कम से कम दो महीने के लिए भेजने को कहा था|

दो महीने सुनकर कोमल  का कलेजा धक् रह गया था| दो महीने बिना चुदाई के रहना बहुत मुश्किल था| यहाँ तो पति की कमी उसका देवरराजू पूरी कर देता था| गाँव में दो महीने तक क्या होगा ये सोच सोच कर कोमल  परेशान थी लेकिन कोई चारा भी तो नहीं था|

जाना तो था ही| मोहन ने कोमल  को कानपूर में ट्रैन में बैठा दिया| अगले दिन सुबह ट्रैन गोपालपुर गाँव पहुँच गयी जो की कोमल  की ससुराल थी| कोमल  ने चूड़ीदार पहन रखा था| कुरता कोमल  के घुटनों से करीब आठ इंच ऊपर था और कुर्ते के दोनों साइड का कटाव कमर तक था|

चूड़ीदार कोमल  के नितम्बों तक टाइट था| चलते वक़्त जब कुर्ते का पल्ला आगे पीछे होता या हवा के झोंके से उठ जाता तो टाइट चूड़ीदार में कसी कोमल  की टांगें मदहोश कर देने वाली मांसल जांघें और विशाल नितम्ब बहुत ही सेक्सी लगते|

ट्रैन में सब मर्दों की नज़रें कोमल  की टांगों पर लगी हुई थी| स्टेशन पर कोमल  को लेने सास और ससुर दोनों आए हुए थे| कोमल  अपने ससुर से पर्दा करती थी इसलिए उसने चुन्नी का घूँघट अपने सर पे ले लिया|

अभी तक जो चुन्नी कोमल  की छातियों के उभार को छुपा रही थी अब उसके घूँघट का काम करने लगी| कोमल  की बड़ी बड़ी छातियाँ स्टेशन पे सबका ध्यान खींच रही थी| कोमल  ने झुक के सास के पाओं छूए|

जैसे ही कोमल  पाऊँ छूने के लिए झुकी दीनदयाला को उसकी चूड़ीदार में कसी मांसल जांघें और नितम्ब नज़र आने लगे| दीनदयाला का दिल एक बार तो धड़क उठा| शादी के बाद से बहु की खूबसूरती को चार चाँद लग गए थे|

बदन भर गया था और जवानी पूरी तरह निखर आई थी| दीनदयाला को साफ़ दिख रहा था की बहु का टाइट चूड़ीदार और कुरता बड़ी मुश्किल से उसकी जवानी को समेटे हुए थे|

सास से आशीर्वाद लेने के बाद कोमल  ने ससुरजी के भी पैर छूए| दीनदयाला ने बहु को प्यार से गले लगा लिया| बहु के जवान बदन का स्पर्श पाते ही दीनदयाला कांप गया| कोमल  की सास रोमा  देवी बहु के आने से बहुत खुश थी|

स्टेशन के बाहर निकल कर उन्होंने तांगा किया| पहले रोमा  देवी तांगे पे चढ़ी| उसके बाद दीनदयाला ने बहु को चढ़ने दिया| दीनदयाला को मालूम था की जब बहु तांगे पे चढ़ने के लिए टांग ऊपर करेगी तो उसे कुर्ते के कटाव में से बहु की पूरी टांग और नितम्ब भी देखने को मिल जाएंगे|

वही हुआ, जैसे ही कोमल  ने तांगे पे बैठने के लिए टांग ऊपर की, दीनदयाला को चूड़ीदार में कसी बहु की सेक्सी टांगों और भारी चूतड़ों की झलक मिल गयी|

यहां तक की दीनदयाला को चूड़ीदार के सफ़ेद महीन कपड़े में से बहु की कच्छी (पैंटी) की भी झलक मिल गयी| बहु ने गुलाबी रंग की कच्छी पहन रखी थी| अब तो दीनदयाला का लंड भी हरकत करने लगा|

उसने बड़ी मुश्किल से अपने को संभाला| दीनदयाला को अपनी बहु के बारे में ऐसा सोचते हुए अपने ऊपर शर्म आ रही थी| वो सोच रहा था की मैं कैसा इंसान हूँ जो अपनी ही बहु को ऐसी नजरों से देख रहा हूँ|

बहु तो बेटी के सामान होती है| लेकिन क्या करता, था तो मरद ही| घर पहुँच कर सास ससुर ने बहु की खूब खातिरदारी की| गाँव में आ कर अब कोमल  को 15 दिन हो चुके थे|

सास की तबियत खराब होने के कारण कोमल  ने सारा घर का काम संभाल लिया था| उसने सास ससुर की खूब सेवा करके उन्हें खुश कर दिया था| गाँव में औरतें लहंगा चोली पहनती थी|

इसलिए कोमल  ने भी कभी कभी लहंगा चोली पहनना शुरू कर दिया| लहंगे चोली ने तो कोमल  की जवानी पे चार चाँद लगा दिए| गोरी पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए भारी नितम्बों ने तो दीनदयाला का जीना हराम कर रखा था|

कोमल  का ससुर दीनदयाला एक लम्बा तगड़ा आदमी था|अब उसकी उम्र करीब 55 साल हो चली थी| जवानी में उसे पहलवानी का शौक था| आज भी उसका जिस्म बिलकुल गठा हुआ था|

रोज़ लंगोट बाँध के कसरत करता था और पूरे बदन की मालिश करवाता था| सबसे बड़ी चीज़ जिस पर उसे बहुत नाज़ था वो थी उसके मसल्स और उसका 11 इंच लम्बा फौलादी लंड|

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लेकिन दीनदयाला की बदकिस्मती ये थी की उसकी पत्नी रोमा  देवी उसकी वासना की भूख कभी शांत नहीं कर सकी| रोमा  देवी धार्मिक स्वभाव की थी| उसे सेक्स का कोई शौक नहीं था|

दीनदयाला के मोटे लम्बे लौड़े से डरती भी थी क्योंकि हर बार चुदाई में बहुत दर्द होता था| वो मज़ाक में दीनदयाला को गधा कहती थी| पत्नी की बेरुखी के कारण दीनदयाला को अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए दूसरी औरतों का सहारा लेना पड़ा|

दीनदयाला के खेतों में कई औरतें काम करती थी| इन मज़दूर औरतों में से सुंदर और जवान औरतों को पैसे का लालच दे कर अपने खेत के पंप हाउस में चोदता था| जिन औरतों को दीनदयाला ने एक बार चोद दिया वो तो मानो उसकी गुलाम बन जाती थी|

आखिर ऐसा लम्बा मोटा लंड बहुत किस्मत वाली औरतों को ही नसीब होता है|तीन चार औरतें तो पहली चुदाई में बेहोश भी हो गयी| दो औरतें तो ऐसी थी जिनकी चूत दीनदयाला के फौलादी लौड़े ने सचमुच ही फाड़ दी थी|

अब तक दीनदयाला कम से कम बीस औरतों को चोद चुका था| लेकिन दीनदयाला जानता था की पैसा दे कर चोदने में वो मज़ा नहीं जो लड़की को पता के चोदने में है| आज तक चुदाई का सबसे ज़्यादा मज़ा उसे अपनी साली को चोदने में आया था|

रोमा  देवी की बहन सविता , रोमा  देवी से 10 साल छोटी थी| दीनदयाला ने जब उसे पहली बार चोदा उस वक़्त उसकी उम्र 18 साल की थी| कॉलेज में पढ़ती थी| गर्मिओं की छुट्टी बिताने अपने जीजू के पास आई थी|

बिलकुल कुंवारी चूत थी| दीनदयाला ने उसे भी खेत के पंप हाउस में ही चोदा था| दीनदयाला के मूसल ने सविता की कुंवारी नाज़ुक सी चूत को फाड़ ही दिया था| सविता बहुत चिल्लाई थी |

फिर बेहोश हो गयी थी| उसकी चूत से बहुत खून निकला था| दीनदयाला ने सविता के होश में आने से पहले ही उसकी चूत का सारा खून साफ़ कर दिया था ताकि वो डर न जाए|दीनदयाला से चुदने के बाद सविता सात दिन ठीक से चल भी नहीं पाई और जब ठीक से चलने लायक हुई तो शहर चली गयी| लेकिन ज़्यादा दिन शहर में नहीं रह सकी|

दीनदयाला के फौलादी लौड़े की याद उसे फिर से अपने जीजू के पास खींच लायी| इस बार तो सविता सिर्फ जीजू से चुदवाने ही आई थी| दीनदयाला ने तो समझा था की साली जी नाराज़ हो कर चली गयी| आते ही सविता ने दीनदयाला को कहा||

सविता – जीजू मैं सिर्फ आपके लिए ही आई हूँ|

उसके बाद तो करीब रोज़ ही दीनदयाला सविता को खेत के पंप हाउस में चोदता था| सविता भी पूरा मज़ा लेकर चुदवाती थी| दीनदयाला के खेत में काम करने वाली सभी औरतों को पता था की जीजा जी साली की खूब चुदाई कर रहे हैं|

ये सिलसिला करीब चार साल चला| सविता की शादी के बाद दीनदयाला फिर खेत में काम करने वालिओं को चोदने लगा| लेकिन वो मज़ा कहाँ जो सविता को चोदने में आता था|

बड़े नाज़ नखरों के साथ चुदवाती थी| शादी के बाद एक बार सविता गाँव आई थी| मौका देख कर दीनदयाला ने फिर उसे चोदा| सविता ने दीनदयाला को बताया था की दीनदयाला के लम्बे मोटे लौड़े के बाद उसे पति के लंड से तृप्ति नहीं होती थी| सीता भी दीनदयाला को कहती||

सविता  – जीजू आपका लंड तो सचमुच गधे के लंड जैसा है| गाँव में गधे कुछ ज़्यादा ही थे| जहाँ नज़र डालो वहीँ चार पांच गधे नज़ारा जाते| कुछ दिन बाद सविता  के पति और सविता दुबई चले गए|

उसके बाद से दीनदयाला को कभी भी चुदाई से तृप्ति नहीं मिली| अब तो सविता  को दुबई जा कर 20 साल हो चुके थे| दीनदयाला के लिए अब वो सिर्फ याद बन कर रह गयी थी| रोमा  देवी तो अब पूजा पाठ में ही ध्यान लगाती थी|

इस उम्र में खेत में काम करने वाली औरतों को भी चोदना मुश्किल हो गया था| अब तो जब कभी रोमा  देवी की कृपा होती तो साल में एक दो बार उनको चोद कर ही काम चलाना पड़ता था|

लेकिन रोमा  देवी को चोदने में बिलकुल भी मज़ा नहीं आता था| धीरे धीरे दीनदयाला को विश्वास होने लगा था की अब उसकी चोदने की उम्र निकल गयी है| लेकिन जब से बहु घर आई थी |

दीनदयाला की जवानी की यादें फिर से ताज़ा हो गयी थी| बहु की जवानी तो सचमुच ही जान लेवा थी| सीता तो बहु के सामने कुछ भी नहीं थी| शादी के बाद से तो बहु की जवानी मानो बहु के ही काबू में नहीं थी|

बहु के कपड़े बहु की जवानी को छुपा नहीं पाते थे|जब से बहु आई थी दीनदयाला की रातों की नींद उड़ गयी थी| बहु दीनदयाला से पर्दा करती थी| मुंह तो ढक लेती थी लेकिन उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ खुली रहती थी|

गोरा बदन, लम्बे काले घने बाल, बड़ी बड़ी छातियाँ, पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए चूतड बहुत जान लेवा थे| टाइट चूडीदार में तो बहु की मांसल टांगें दीनदयाला की वासना भड़का देती थी|

कोमल , जी-जान से अपने सास ससुर की सेवा करने में लगी हुई थी| कोमल  को महसूस होने लगा था की ससुरजी उसे कुछ अजीब सी नजरों से देखते हैं| वैसे भी औरतों को मर्द के इरादों का बहुत जल्दी पता लग जाता है|

फिर वो अक्सर सोचती की शायद ये उसका वहम है| ससुर जी तो उसके पिता के सामान थे| एक दिन की बात है| कोमल  ने अपने कपड़े धो कर छत पर सूखने डाल रखे थे| इतने में घने बादल छा गए| बारिश होने को थी| दीनदयाला कोमल  से बोले –

दीनदयाला – बहु बारिश होने वाली है मैं ऊपर से कपडे ले आता हूँ|

कोमल  – नहीं-नहीं पिताजी आप क्यों तकलीफ करते हैं मैं अभी जा के लाती हूँ| उसे मालूम था की आज सिर्फ उसी के कपडे सूख रहे थे|

दीनदयाला- अरे बहु तुम सारा दिन इतना काम करती हो| इसमें तकलीफ कैसी? हमें भी तो कुछ काम करने दो|

ये कह के दीनदयाला छत पे चल पड़ा| छत पे पहुँच के दीनदयाला को पता लगा की क्यों बहु खुद ही कपड़े लाने की जिद कर रही थी| डोरी पर सिर्फ दो ही कपड़े सूख रहे थे| एक बहु की कच्छी और एक उसकी ब्रा|

दीनदयाला का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा| कितनी छोटी सी कच्छी थी, बहु के विशाल नितम्बों को कैसे ढ़कती होगी| दीनदयाला से नहीं रहा गया और उसने कोमल  की पैंटी को डोरी से उतार लिया और हाथों में पैंटी के मुलायम कपड़े को फील करने लगा|

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फिर उसने पैंटी को उस जगह से सूंघ लिया जहाँ कोमल  की चूत पैंटी से टच करती थी| हालांकि पैंटी धुली हुई थी फिर भी दीनदयाला औरत के बदन की खुशबू पहचान गया|

दीनदयाला मन ही मन सोचने लगा की अगर धुली हुई कच्छी में से इतनी मादक खूशबू आती है तो पहनी हुई कच्छी की गंध तो उसे पागल बना देगी| दीनदयाला का लौड़ा हरकत करने लगा|

वो बहु की पैंटी और ब्रा लेकर नीचे आया, बहु ऊपर तो ये दो ही कपडे थे| ससुर के हाथ में अपनी पैंटी और ब्रा देखकर कोमल  शर्म से लाल हो गयी| उसने घूँघट तो निकाल ही रखा था, इसलिए दीनदयाला उसका चेहरा नहीं देख सकता था|

कोमल  शर्माते हुए बोली||कोमल ,पिताजी इसीलिए तो मैं कह रही थी की मैं ले आती हूँ| आपने बेकार तकलीफ की|

दीनदयाला- नहीं बहु तकलीफ किस बात की? लेकिन ये इतनी छोटी सी कच्छी तुम्हारी है? अब तो कोमल  का चेहरा टमाटर की तरह सुर्ख लाल हो गया|

कोमल  – जज…जी पिताजी!

कोमल  सर नीचे किये हुए बोली|

दीनदयाला- लेकिन बहु ये तो तुम्हारे लिए बहुत छोटी है, इससे तुम्हारा कम चल तो जाता है न?

कोमल  – जी पिताजी!

कोमल  सोच रही थी की किसी तरह ये धरती फट जाए और मैं उसमे समा जाऊं|

दीनदयाला- बेटी इसमें शर्माने की क्या बात है, तुम्हारी उम्र में लड़कियों की कच्छी अक्सर बहुत जल्दी छोटी हो जाती है| गाँव में तो औरतें कच्छी पहनती नहीं हैं| अगर छोटी हो गयी है तो सासु माँ से कह देना शहर जा कर और खरीद देगी|

 

हम गए तो हम ले आएँगे| लो ये सूख गयी है रख लो|ये कह कर दीनदयाला ने कोमल  को उसकी पैंटी और ब्रा दे दी| इस घटना के बाद दीनदयाला ने कोमल  के साथ और खुल कर बातें करना शुरू कर दिया था।

एक दिन रोमा  देवी को शहर सत्संग में जाना था| दीनदयाला उनको ले कर शहर जाने वाला था| दोनों घर से सुबह स्टेशन की और चल पड़े| रास्ते में दीनदयाला के जान पहचान का लड़का कार से शहर जाता हुआ मिल गया|

दीनदयाला ने कहा की आंटी को भी साथ ले जाओ| लड़का मान गया और रोमा  देवी उसके साथ कार में शहर चली गयी| दीनदयाला घर वापस आ गया| दरवाज़ा अंदर से बन्द था| बाथरूम से पानी गिरने कीआवाज़ आ रही थी|

शायद बहु नहा रही थी| कोमल  तो समझ रही थी की सास ससुर शाम तक ही वापस लौटेंगे| दीनदयाला के कमरे का एक दरवाजा गली में भी खुलता था| दीनदयाला कमरे का ताला खोल के अपने कमरे में आ गया|

उधर कोमल  बेखबर थी| वो तो समझ रही थी कि घर में कोई नहीं है| नहा कर कोमल  सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में ही बाथरूम से बाहर निकल आई|

उसका बदन अब भी गीला था| बाल भीगे हुए थे| कोमल  अपनी पैंटी और ब्रा जो अभी उसने धोई थी सुखाने के लिए आँगन में आ गयी|

दीनदयाला अपने कमरे के परदे के पीछे से सारा नज़ारा देख रहा था| बहु को पेटीकोट और ब्लाउज़ में देख कर दीनदयाला को पसीना आ गया| क्या बला की खूबसूरत थी बहू|

बहुत कसा हुआ पेटीकोट पहनती थी| बदन गीला होने के कारण पेटीकोट उसके चूतड़ों से चिपका जा रहा था| बहु के फैले हुए चूतड पेटीकोट में बड़ी मुश्किल से समा रहे थे|

बहु का मादक रूप मानो उसके ब्लाउज और पेटीकोट में से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था| उफ क्या गदराया हुआ बदन था| बहु ने अपनी धुली हुई कच्छी और ब्रा डोरी पर सूखने को डाल दी|

अचानक वो कुछ उठाने के लिए झुकी तो पेटीकोट उसके विशाल चूतड़ों पर कस गया| पेटीकोट के सफ़ेद कपड़े में से दीनदयाला को साफ़ दिख रहा था की आज बहु ने काले रंग की कच्छी पहन रखी है|

उफ बहु के सिर्फ बीस प्रतिशत चूतड ही कच्छी में थे बाकी तो बाहर गिर रहे थे| जब बहु सीधी हुई तो उसकी कच्छी और पेटीकोट उसके विशाल चूतड़ों के बीच में फँस गए| अब तो दीनदयाला का लौड़ा फनफनाने लगा|

उसका मन कर रहा था की वो जा कर बहु के चूतड़ों की दरार में फँसी पेटीकोट और कच्छी को खींच के निकाल दे| बहु ने मानो दीनदयाला के दिल की आवाज़ सुन ली| उसने अपनी चूतड़ों की दरार में फंसे पेटीकोट को खींच के बाहर निकाल लिया|

बहु आँगन में खड़ी थी इसलिए पेटीकोट में से उसकी मांसल टांगें भी नज़र आ रही थी| दीनदयाला के लंड में इतना तनाव सीता को चोदते वक़्त भी नहीं हुआ था| बहु के सेक्सी चूतड़ों को देख के दीनदयाला सोचने लगा |

इसकी गांड मार के तो आदमी धन्य हो जाए| दीनदयाला ने आज तक किसी औरत की गांड नहीं मारी थी| असलियत तो ये थी की दीनदयाला का गधे जैसा लौड़ा देख कर कोई औरत गांड मरवाने के लिए राज़ी ही नहीं थी|

रोमा  देवी तो चूत ही बड़ी मुश्किल से देती थी, गांड देना तो बहुत दूर की बात थी| एक दिन कोमल  ने खेतों में जाने की इच्छा प्रकट की| उसने सासु माँ से कहा||

कोमल  – मम्मी जी मैं खेतों में जाना चाहती हूँ अगर आप इज़ाज़त दें तो आपके खेत और फसल देख आऊं| शहर में तो ये देखने को मिलता नहीं है|

सास – अरे बेटी इसमें इज़ाज़त की क्या बात है? तुम्हारे ही खेत हैं जब चाहो चली जाओ| मैं अभी तुम्हारे ससुर जी से कहती हूँ, तुम्हें खेत दिखाने ले जाएं|

कोमल  – नहीं नहीं मम्मी जी आप पिताजी को क्यों परेशान करती हैं मैं अकेली ही चली जाउंगी|

सास – इसमें परेशान करने की क्या बात है? कई दिन से ये भी खेत नहीं गए हैं तुझे भी साथ ले जाएंगे| जाओ तुम तैयार हो जाओ| और हाँ लहंगा चोली पहन लेना खेतों में जाने के लिए वही ठीक रहता है| कोमल  तैयार होने गयी|

रोमा  देवी ने दीनदयाला को कहा अजी सुनते हो आज बहु को खेत दिखा लाओ| कह रही थी मैं अकेली ही चली जाती हूँ| मैंने ही उसको रोका और कहा ससुरजी तुझे ले जाएंगे|

दीनदयाला- ठीक है मैं ले जाऊँगा लेकिन अकेली भी चली जाती, तो क्या हो जाता। गाँव में किस बात का डर?

रोमा  देवी – कैसी बातें करते हो जी? जवान बहु को अकेले भेजना चाहते हो| अभी नादाँन है| अपनी जवानी तो उससे संभाली नहीं जाती अपने आप को क्या संभालेगी?इतने में कोमल  आ गयी| लहंगा चोली में बला की खूबसूरत लग रही थी|

कोमल  – चलिए पिताजी मैं तैयार हूँ|

दीनदयाला- चलो बहु हम भी तैयार हैं|

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ससुर और बहु दोनों खेत की ओर निकल पड़े| कोमल  आगे आगे चल रही थी और दीनदयाला उसके पीछे| कोमल  ने घूंघट निकाल रखा था| दीनदयाला बहु की मस्तानी चाल देख कर पागल हुआ जा रहा था|

बहु की पतली गोरी कमर बल खा रही थी| उसके नीचे फैले हुए मोटे मोटे चूतड चलते वक़्त ऊपर नीचे हो रहे थे| लहंगा घुटनों से थोड़ा ही नीचे था| बहु की गोरी गोरी टांगें और चूतड़ों तक लटकते लम्बे घने काले बाल दीनदयाला की दिल की धड़कन बढ़ा रहे थे|

ऐसा नज़ारा तो दीनदयाला को ज़िन्दगी में पहले कभी नसीब नहीं हुआ| दीनदयाला की नज़रें बहु के मटकते हुए मोटे मोटे चूतड़ों और पतली बलखाती कमर पर ही टिकी हुई थी|

उन जानलेवा चूतड़ों को मटकते देखकर दीनदयाला की आँखों के सामने उस दिन का नज़ारा घूम गया, जिस दिन उसने बहु के चूतड़ों के बीच उसके पेटीकोट और कच्छी को फंसे हुए देखा था| दीनदयाला का लौड़ा खड़ा होने लगा|

कोमल  घूंघट निकाले आगे आगे चली जा रही थी| वो अच्छी तरह जानती थी की ससुर जी की आँखें उसके मटकते हुए नितम्बों पे लगी हुई हैं| रास्ता संकरा हो गया था और अब वो दोनों एक पगडंडी पे चल रहे थे|

अचानक साइड की पगडंडी से दो गधे कोमल  के सामने आ गए| रास्ता इतना कम चौड़ा था की साइड से आगे निकलना भी मुश्किल था| मजबूरन कोमल  को गधों के पीछे पीछे चलना पड़ा|

अचानक कोमल  का ध्यान पीछे वाले गधे पे गया|

कोमल  – अरे पिताजी देखिये ये कैसा गधा है इसकी तो पांच टांगें हैं|

कोमल  आगे चल रहे गधे की और इशारा करते हुए बोली|

दीनदयाला- बेटी तुम तो बहुत भोली हो ज़रा ध्यान से देखो इसकी पांच टांगें नहीं हैं|

कोमल  ने फिर ध्यान से देखा तो उसका कलेजा धक् सा रह गया| गधे की पांच टांगें नहीं थी वो तो गधे का लंड था| बाप रे क्या लम्बा लंड था, ऐसा लग रहा था, जैसे उसकी टांग हो|

कोमल  ने ये भी नोटिस किया की आगे वाला गधा गधा नहीं बल्कि गधी थी, क्योंकि उसका लंड नहीं था| गधे का लंड खड़ा हुआ था| कोमल  समझ गयी की गधा क्या करने वाला था| अब तो कोमल  के पसीने छूट गए|

पीछे पीछे ससुर जी चल रहे थे| कोमल  अपने आप को कोसने लगी की, ससुर जी से क्या सवाल पूछ लिया| कोमल  का शर्म के मारे बुरा हाल था| दीनदयाला को अच्छा मौका मिल गया था| उसने फिर से कहा||

दीनदयाला- बोलो बहु हैं क्या इसकी पांच टांगें है?

कोमल  का मुंह शर्म से लाल हो गया और हकलाती हुई बोली||

कोमल  -जज,जी चार ही हैं|

दीनदयाला – तो वो पांचवी चीज़ क्या है बहु?

कोमल  – जज…|जी वो तो ……||जी हमें नहीं पता|

दीनदयाला- पहले कभी देखा नहीं बेटी? दीनदयाला मज़े लेता हुआ बोला||

कोमल  – नही पिताजी|| कोमल  शर्माते हुए बोली।

दीनदयाला – मर्दों की टांगों के बीच में जो होता है वो तो देखा है?

कोमल  – जी|| अब तो कोमल  का मुंह लाल हो गया|

दीनदयाला – अरे बहु जो चीज़ मर्दों की टांगों के बीच में होती है ये वही चीज़ तो है|

दीनदयाला कोमल  के साथ इस तरह की बातें कर ही रहा था कि वही हुआ जो कोमल  मन ही मन सोच रही थी, गधे ने आगे चल रही गधी के पीछे से उसकी फुद्दी मे अपना लंबा लौडा पेल दिया|

कोमल  का ये देखकर बुरा हाल हो गया। कुछ दिनों बाद कोमल  के पति का फ़ोन आया| ससुर जी ने कोमल  को बताया की मोहन  का फ़ोन है| कोमल  ने अपने कमरे में जाकर फोन का रिसीवर उठा लिया|

उधर दीनदयाला ने भी अपने कमरे का रिसीवर नीचे नहीं रखा और बहु और बेटे की बातें सुनने लगा| मोहन बोल रहा था | मोहन कोमल  मेरी जान ससुराल जा कर तो तुम हमें भूल ही गयी हो| अब तो एक महीना बीत गया है और कितना तडपाओगी? बहुत याद आ रही है तुम्हारी|

कोमल  – अच्छा जी आज बड़ी याद आ रही है आपको मेरी! अचानक इतनी याद क्यों आ रही है?

मोहन– खूबसूरत बीवी से एक महीना अलग रहना तो बहुत मुश्किल होता है मेरी जान| सच सारा दिन खड़ा रहता है तुम्हारी याद में|

कोमल  – आपका वो तो पागल है| उसे कहिये एक महीना और इंतज़ार करे|

मोहन – ऐसे न कहो मेरी जान एक महीना और इंतज़ार करना तो बहुत मुश्किल है|

कोमल  – तो फिर अभी कैसे काम चल रहा है?

मोहन – अभी तो मैं तुम्हारी पैंटी से ही काम चला रहा हूँ|

कोमल  – ओहो आपने फिर मेरी पैंटी ले ली| जिस दिन वहां से चली थी उस दिन सुबह नहाने से पहले पैंटी उतारी थी| सोचा था गाँव में जा के धो लूँगी| गन्दी ही सूटकेस में रख ली थी| यहां आ के देखा तो पैंटी गायब थी|

मोहन – बड़ी मादक खुशबू है तुम्हारी पैंटी की| याद है पहली रात को उतावलेपन में जब पहली बार तुम्हें चोदा था तो पैंटी उतारने की भी फुरसत नहीं थी, बस चूत के ऊपर से पैंटी को साइड में करके ही पेल दिया था तुम्हारी फूली हुई चूत में|

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कोमल  – अच्छी तरह याद है मेरे राजा| अब आप इस पैंटी को भी फाड़ दोगे? अब तक दो पैंटी तो पहले ही फाड़ चुके हो|

मोहन– कोमल  मेरी जान इस बार आओगी तो पैंटी नहीं तुम्हारी चूत ही चोद के फाड़ दूंगा|

कोमल  – सच! मैं भी तो यही चाहती हूँ|

मोहन – क्या चाहती हो मेरी जान?

कोमल  – की आप मेरी|| हटिये भी|| आप बहुत चालाक हैं|

मोहन – बोलो ना मेरी जान फ़ोन पे भी शर्मा रही हो|

कोमल  – आप तो बस मेरे मुंह से गन्दी गन्दी बातें सुनना चाहते हैं|

मोहन – जब चुदवाने में कोई शर्म नहीं तो बोलने में कैसी शर्म? तुम्हारे मुंह से सुनके शायद मेरे लंड को कुछ शांति मिले| बोलो न मेरी जान तुम भी क्या चाहती हो?

कोमल  – उफ…! आप भी बस| मैं भी तो चाहती हूँ की आप मुझे इतना चोदें कि मेरी…|| मेरी चूत फट जाए| मेरी चूत अब आपके उसके लिए बहुत तड़प रही है|

मोहन  – किसके लिए मेरी जान|

कोमल  – आपके लल|| लंड के लिए और किसके लिए| कोमल  मुस्कुराते हुए बोली|

मोहन – सच कोमल  अब और नहीं सहा जाता| मालूम है इस वक़्त भी तुम्हारी पैंटी मेरे खड़े हुए लंड पे लटक रही है|

कोमल  – हाय राम मेरी पैंटी की किस्मत भी मेरी चूत की किस्मत से अच्छी है| अगर आपने मुझे पहले ही बुला लिया होता तो इस वक़्त आपके लंड पे पैंटी नहीं मेरी चूत होती|

मोहन – कोई बात नहीं इस बार जब आओगी तो इतना चोदूँगा कि तंग आ जाओगी| बोलो मेरी जान जी भर के दोगी ना?

कोमल  – हाँ मेरे राजा आप लेंगे तो क्यों नहीं दूँगी| मैंने तो सिर्फ टांगें चौड़ी करनी हैं बाकी सारा काम तो आप ही ने करना है|

मोहन– ऐसा न कहो मेरी जान, चूत देने की कला तो कोई तुमसे सीखे|

कोमल  – अच्छा जी! तो अपनी बीवी को चोदना इतना अच्छा लगता है? वैसे यहां एक औरत कमला है जो मालिश बहुत अच्छी करती है| मेरे पूरे बदन की मालिश करती है| यहां तक की मेरी चूत की भी मालिश कर दी|

कहती है बहु रानी आपकी चूत की मालिश करके मै इसे ऐसा बना दूँगी की आपके पति हमेशा आपकी चूत से ही चिपके रहेंगे| तो मैंने उससे कहा की मैं भी तो यही चाहती हूँ| वर्ना हमारे पति देव को तो हमारी चूत की याद महीने में एक दो बार ही आती है| ठीक कहा ना जी? उसने चूत के बालों पे भी कुछ किया है|

मोहन – क्या किया है मेरी जान बताओ न|

कोमल  – मैं क्यों बताऊँ? खुद ही देख लीजियेगा| लेकिन चूत पे से पैंटी साइड में करके पेलने से नहीं पता चलेगा| ये देखने के लिए तो पूरी नंगी करके ही चोदना पड़ेगा|

मोहन – एक बार आ तो जाओ मेरी जान अब कपड़ों की ज़रुरत नहीं पड़ेगी| हमेशा नंगी ही रखूँगा|

कोमल  – हाय ऐसी बातें न करिये| मेरी चूत बिलकुल गीली हो गयी है| आपके पास तो मेरी पैंटी है मेरे पास तो कुछ भी नहीं है|

मोहन – वहां गाँव में किसी को ढून्ढ लो| मोहन मज़ाक करता हुआ बोला|

मोहन  – छी कैसी बातें करते हैं? वैसे आपके गाँव में आदमी कम गधे ज्यादा नज़र आते हैं| एक दिन तो हद ही हो गयी| मैं खेत में जा रही थी| मेरे आगे आगे एक गधा और गधी चल रहे थे| गधे का लंड खड़ा हुआ था|

बाप रे! तीन फुट से भी लम्बा होगा| बिलकुल ज़मीं पे लगने को हो रहा था| अचानक वो आगे चल रही गधी पर चढ़ गया और पूरा तीन फुट का लंड उसकी चूत में पेल दिया| सच मेरी तो चीख ही निकल गयी|

ज़िन्दगी में पहली बार इतना लम्बा लंड किसी के अंदर जाता देखा| मोहन,, तुम अपना ध्यान रखना मेरी जान| खेतों में अकेली मत जाना| तुम्हारे कातिलाना चूतड़ों को देख के कोई गधा तुमपे न चढ़ जाए| कहीं तुम्हारी चूत में तीन फुट का लंड पेल दिया तो? मोहन हँसता हुआ बोला|

कोमल  – हटिये आप तो बड़े वो हैं आपको तो शर्म भी नहीं आती| जिस दिन सचमुच किसी गधे ने मेरे अंदर तीन फुट का लंड पेल दिया ना उस दिन के बाद मेरी चूत इतनी चौड़ी हो जाएगी की आपके काबिल नहीं रह जाएगी| बोलिये मंज़ूर है?

मोहन – अगर तुम्हारी चूत की प्यास गधे के लंड से बुझ जाती है तो मुझे मंज़ूर है| मैं तो तुम्हें खुश और तुम्हारी चूत को तृप्त देखना चाहता हूँ|

कोमल  – जाईये भी हम आपसे नहीं बोलते|

मोहन– नाराज़ मत हो मेरी जान मैं तो मज़ाक कर रहा था|

कोमल  – अच्छा अब फ़ोन रखिये मुझे खाना भी बनाना है|

मोहन – ठीक है मेरी जान दो तीन दिन बाद फिर फ़ोन करूँगा| बाय|

मोहन ने फ़ोन रख दिया| मोहन की बातें सुन कर कोमल  की चूत गीली हो गयी थी| वो रिसीवर रखने ही वाली थी की उसे एक और क्लिक की आवाज़ सुनाई दी| ज़रूर कोई और भी उनकी बातें सुन रहा था|

कोमल  के घर तो एक्सटेंशन था नहीं| फ़ोन का एक्सटेंशन तो यहीं ससुराल में था| वो भी ससुर जी के कमरे में| तो क्या ससुर जी उनकी बातें सुन रहे थे? बाप रे अगर ससुर जी ने उनकी बातें सुन ली तो क्या सोच रहे होंगे?

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उधर दीनदयाला बहु के मुंह से ऐसी सेक्सी बातें सुनकर हैरान रह गया| आखिर बहु उतनी भी भोली नहीं थी जितनी शक्ल से लगती थी| अब दीनदयाला बहु को छुप छुप के देखने के चक्कर में रहता था| एक रात कोमल  देर तक जग रही थी|

शायद नावेल पढ़ रही थी| सब लोग सो गए थे| दीनदयाला की आँखों में नींद कहाँ? वो बिस्तर पर लाइट करवटें बदल रहा था| तभी उसे बहु के कमरे में हरकत सुनाई दी| दीनदयाला दरवाजे से देखने लगा|

तभी बहु के कमरे का दरवाज़ा खुला और वो दीनदयाला के कमरे के बगल वाले बाथरूम की ओर जा रही थी| बहु के हाथ में कोई सफ़ेद सी चीज़ थी| ऐसा लग रहता जैसे उसकी कच्छी हो|

बहु ने बाथरूम में घुस के दरवाज़ा बंद कर लिया| दीनदयाला जल्दी से दबे पाऊँ उठा और बाथरूम के दरवाज़े से कान लगा कर सुनने लगा| इतने में पिसससससससस की आवाज आने लगी| बहु पेशाब कर रही थी|

बहु के पेशाब के लिए पैर फैला कर बैठने और उसकी चूत के खुले हुए होंठों के बीच से निकलती हुई पेशाब की धार की कल्पना से ही दीनदयाला का लौड़ा तन गया| जैसे ही पिससस…||

की आवाज़ बन्द हुई दीनदयाला जल्दी से अपने कमरे में जा कर लेट गया| इतने में बहु बाथरूम से बाहर आई और अपने कमरे की ओर जाने लगी| उसके हाथ में वो सफ़ेद चीज़ अब नहीं थी|

अपने कमरे में जा कर बहु ने दरवाज़ा बन्द कर लिया और लाइट भी ओफ़्फ़ कर दी, शायद सोने जा रही थी| दीनदयाला फिर से उठा और बाथरूम में गया| उसका गेस सही निकला, एक कोने में धोने के कपड़ों में बहु की सफ़ेद कच्छी पड़ी हुई थी|

दीनदयाला ने बाथरूम का दरवाज़ा अंदर से बन्द किया और बहु की कच्छी को उठा लिया| अभी तक उस कच्छी में गर्माहट थी| शायद अभी अभी उतारी थी| दीनदयाला ध्यान से कच्छी को देखने लगा|

कच्छी में दो लम्बे काले बाल फँसे हुए थे| कम से कम चार इंच लम्बे तो थे ही| ये देख कर दीनदयाला का लंड हरकत करने लगा| बाप रे ये तो बहु की चूत के बाल थे| बाप रे बहु की चूत पे खूब लम्बे और घने बाल हैं|

कच्छी का जो हिस्सा बहु की चूत पे टच करता था वहां गहरे रंग का दाग था| शायद बहु की पेशाब और चूत के रस का दाग था| दीनदयाला ने दोनो बाल निकाल लिए और कच्छी को सूंघने लगा| उफ क्या जानलेवा गंध थी|

ये तो बहु की चूत की खुशबू थी| दीनदयाला औरत की चूत की गंध अच्छी तरह पहचानता था| दीनदयाला ने जी भर के बहु की कच्छी को सूंघा और फिर उस जगह को अपने लौड़े के सुपाड़े पे टिका दिया जो बहु की चूत से टच करती थी|

दीनदयाला ने कच्छी को अपने लंड पे खूब रगड़ा| उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो बहु की चूत पे अपना लंड रगड़ रहा हो|कच्छी इतनी नाज़ुक थी की दीनदयाला को डर था कि कहीं उसका मोटा फौलादी लौड़ा बहु की कच्छी ना फाड़ दे|

कुछ देर कच्छी को लंड पे रगड़ने और बहु की चूत की कल्पना करके दीनदयाला अपने को कण्ट्रोल न कर सका और उसने ढेर सारा वीर्य कच्छी में उंडेल दिया| फिर उसने कच्छी धोने में डाल दी और वापस अपने कमरे में चला गया|

कहानी जारी रहेगी…

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