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Bhabhi Sex Story

बाबा ने जंगल में भाभी के साथ किया मंगल part-2 (Bhabhi Sex Story)

दोस्तों ये कहानी कुछ अलग हटकर है। तो चलिये अब ज्यादा समय वेस्ट ना करते हुए अपनी स्टोरी पर आती हूँ।

ये कहानी मेरी है यानि सोनम की। आप ने देखा की कैसे में बाबा के लंड की दिवानी हो चुकी हूँ | अब में बाबा का लंड अपने चुत में डालना सुरु कर रही हूँ |

बाबा ने भी कुछ बनावटी अंदाज़ में कहा।

मुझे इसका प्रसाद चाहिए। कहकर मैंने अपनी उंगली से बाबा के तने हुए लंड को छू कर कहा।

बाबा ने अपना लंगोट एक तरफ कर अपना लंड बाहर निकाला और कहा लो बेटी पिछले 13 साल से इसने कभी किसी स्त्री के मुख को नहीं देखा है। जब से यहां आया हूं, मैं ब्रह्मचर्य का पालन कर रहा था। मगर तुम मेनका बनकर आईं और मेरा ब्रह्मचर्य भंग कर दिया।

मैंने बाबा के लंड को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया। बाबा का लंड बहुत ही मजबूत और डंडे की तरह बिल्कुल सीधा था। मैंने बिना कुछ कहे बाबा के लंड को अपने होठों से लगा लिया और मुंह की गर्मी देने लगी। बाबा ने अपनी टांगे खोल दी और अपना लंगोट भी उतार दिया।

मैंने बड़ी तसल्ली से बाबा का तगड़ा और लंबा लंड अपने मुंह में लेकर साफ किया। बाबा भी को उह आह कर रहे थे। जब गुदगुदी होती तो उचक जाते, मेरे सारे बदन पे हाथ फेरते रहे और मेरे स्तनों से खेलते रहे। थोड़ी देर बाद बाबा उठे और उन्होंने एक गद्दा और एक रजाई उठाई और फर्श पर बिछा दिया।

बाबा – बेटी यहा आ जाओ यहां मैं भोग लगाऊंगा।

बाबा ने जंगल में भाभी के साथ किया मंगल

तो मैं रजाई के ऊपर आ गई। बाबा ने मुझे खड़ा रखा और बड़े प्यार से मेरी टांगों को चूमा जो मेरी कैप्री के बाहर दिख रही थी। बाबा ने मेरी जांघों को सहलाया और मेरे नितम्बों को जोर जोर से दबाया, सहलाया और चूमा ।

बाबा – जानती हो? जब मैं शहर में जाता हूं और वहां लड़कियों और औरतों को इस तरह के कपड़ों में देखता हूं तो बड़ा मेरा बड़ा दिल करता है। मगर मैं ऐसा कर नहीं सकता। बस मन मसोस कर रह जाता था। आज मैं अपनी इच्छा पूरी करना चाहता हूं।

बाबा ने अपना दिल खोला।

मैंने भी कहा – बाबा आज मैंने अपने आपको, आप को अर्पण कर दिया। मेरा जो चाहो करो।

मेरी सहमति पाकर बाबा ने मेरे नितम्बों को बहुत प्यार किया। बहुत सहलाया और चपत मार मार के दोनों लाल कर दिए। फिर बाबा ने हाथों से मेरा एक एक कपड़ा उतार कर मुझे बिल्कुल नंगा कर दिया। मेरे नंगे बदन को बाबा ने बड़े प्यार से देखा। मेरी जांघों पे हाथ फिराया, जीभ से चाटा, मेरे पेट और कमर को भी चूमा। मेरे स्तनों को सहलाया, दबाया, निचोड़ा।

मेरी निप्पल को मुंह मे लेकर, उन्हें दांतों से काटा। मेरी गर्दन को चूमा। मेरे गालों को चूसा, होठ चूसे और अपनी जीभ को मेरे मुंह में घुमाया। मतलब बाबा ने बड़ी तसल्ली से मुझे चूसा। उसके बाद मुझे नीचे लिटाया। मैंने खुद ब खुद अपनी टाँगें खोल दी, तो बाबा मेरी टांगों के बीच में आ गए।

अपना लंड उन्होंने मेरी टांगों के बीच मेरी चूत के मुख द्वार पर टिकाया जो पहले से ही बेतहाशा गीली हो चुकी थी। बाबा ने हाथ जोड़े किसी देव का ध्यान लगाया और हल्का धक्का मारा, जिससे मेरी चूत का द्वार खुल गया। 2 से 3 धक्को में ही उनका पूरा लंड मेरी गीली हो चुकी चूत में फिसलता चला गया।

बाबा का लंड बहुत ही शानदार था। मोटा और लंबा था और उन्होनें मेरे अंदर से बाहर तक पूरा भर दिया। बाबा ने पहले धीरे धीरे करना शुरू किया। उनके हर धक्के के साथ मेरे मुख से हल्की सी सिसकारी निकल जाती। बाबा बड़े शांत स्वभाव से मेरी चुदाई कर रहे थे। मेरी बेचैनी बढ़ रही थी, मगर बाबा बड़े इत्मिनान से लगे रहे। जब मेरी उत्तेजना बढ़ गई तो मेरी सिसकियां चीख़ों में बदलने लगी और मैं आनंद में बड़बड़ाने लगी।

आह बाबाजी थोड़ा और जोर से करो। बाबा जोर जोर से करो। ऐसा आनंद तो आज तक नहीं आया।

पता नहीं। मैं मन ही मन में क्या क्या बड़बड़ा रही थी। बाबा ने अपने दोनों पांव पीछे को मोड़े और अपने दोनों हाथों को जोड़ कर उंगलियों को आपस में फंसाकर एक अजीब सा आसन बनाया और उसके बाद बाबा ने अपनी स्पीड और तेज कर दी।

मैंने नीचे से कमर उठानी शुरू की। मेरा बदन पसीने से भीगा पड़ा था और ऊपर से बाबा के बदन का पसीना भी छूकर मेरे बदन पे गिर रहा था। 5 से 6 मिनट बाद, मैं तो बुरी तरह से पस्त हो गई। मेरा दिल कह रहा था कि इसी आनंद में अगर मेरी जान भी निकल जाए तो कोई गम नहीं। मगर बाबा उसी रफ्तार से लगे रहे। मैं निढाल हो कर लेटी थी और बाबा अभी भी अंदर बाहर कर रहे थे।

मैंने पूछा बाबा ये जो आपने आसन बनाया है इसका क्या फायदा।

वो बोले इस आसन से पुरुष जितनी देर चाहे संभोग कर सकता है ना तो उसका अंग ढीला पड़ेगा और न ही उसका वीर्यपात होगा।

मैंने कहा यह तो बहुत कमाल की बात है।

बाबा लगे रहें। बाबा की रगड़ाई से मेरा फिर से मन उत्तेजित होने लगा। मेरी फिर से तैयार होने लगी।

बाबा – देखो बेटी तुम फिर से तैयार हो गई। अगर पुरुष दो तीन बार स्त्री को स्खलित न करें तो उसका कोई फायदा नहीं।

चुदाई के साथ ही साथ बाबा प्रवचन भी करते जा रहे थे। इस बार मुझे भी पास होने में 15 मिनट से ज्यादा लगे। मगर यह बात मैंने देखी बाबा को न थकान हुई न उनका सांस फूला। वो बड़े आराम से करते रहे। जब मैं दूसरी बार स्खलित होकर निढाल हो कर नीचे लेटी थी।

तो मैंने बाबा से कहा, बाबा अब बस करो। मेरी पूरी तसल्ली हो चुकी है। अब तो जैसे मेरे अंग अंग में दर्द होने लगा। अब आप भी स्खलित हो जाओ और मेरी चूत को अपने आशीर्वाद से भर दो।

बाबा बोले – बेटी अभी मैं तुमको दो बार और स्खलित कर सकता हूं। मैंने अपने शरीर को ऐसे ढाला है कि जब तक मैं न चाहूं, मैं स्खलित नहीं होऊंगा।

मै – नहीं बाबा अब और नहीं अब तो दर्द होने लगा है।

सच तो यह था कि बाबा का हर प्रहार मेरे अंदर तक चोट कर रहा था। मेरी तो हालत खराब थी। ऐसे संभोग का आनंद तो मैंने अपनी जिंदगी में आज तक नहीं लिया था। बाबा ने मेरी पूरी तसल्ली करवा दी थी।

उसके बाद बाबा ने अपना आसन खोला और बस फिर उनको झड़ने मे दो मिनट भी नहीं लगे। उसके बाद तो ऐसा लगा जैसे किसी नदी का बांध ही फूट गया हो। बाबा के अंदर से निकलते सफेद और गाढ़े पानी से मेरा तो सारा बदन भर गया।

मैंने आज तक किसी पुरुष को इतना माल निकालते हुए नहीं देखा था जो पानी मेरे चेहरे और स्तनों पे गिरा था। वो तो मैंने अपनी जीभ से साफ कर दिया और बाबा के ढीले होते लंड को अपने मुंह में ले लिया। उसमें भी बाबा ने एक दो बार मेरे मुंह में भी अपना माल निकाला। उसके बाद न जाने कितनी देर हम दोनों नंगे ही लेते रहे।

फिर मैं उठी और बोली बाबा मैं नहाना चाहती हूं।

बाबा ने जंगल में भाभी के साथ किया मंगल

तो बाबा मुझे अपनी झोपड़ी के पीछे ले गए। वहां उन्होंने पानी भर रखा था। वहां हम दोनों खुले जंगल में एक साथ नीले आसमान के नीचे नहाएं। नहाने के बाद झोपड़ी के अंदर आए और मैंने हम दोनों के लिए खाना बनाया।

खाना खाकर दोपहर बाद हमने फिर एक लंबी पारी खेली और इस बार बाबा ने मुझे तीन बार स्खलित किया। उसके बाद तो यहां हर रोज का खेल हो गया। धीरे धीरे बाबा ने मेरे सारे छेद खोल दिए। हर रोज़ बाबा किसी नए आसन में मुझे चोदते! उन्होंने तो पूरा कामशास्त्र भी मुझे समझा दिया।

अब तो मेरा दिल करता था कि सब कुछ छोड़ छाड़ कर बाबा के पास ही आ बसून। हम अक्सर ही उस सुनसान जंगल में घूमते जहां दिन करता वहां संभोग करते। थोड़ी दूर पर एक छोटा सा झरना था, वहां पे जाकर नहाते ये समझो कि मैंने बाबा के साथ अपने हनीमून का भरपूर आनंद लिया। बाबा ने भी मुझे जी भर के प्यार दिया।

जिस दिन वापस आना था, मैं बाबा से लिपट कर बहुत रोई। मैं करीब 10 दिन वहां रही और इन 10 दिनों में मैं करीब 50 से ज्यादा बार स्खलित हुई। दोस्तो, अगर आपको ये कहानी पसंद आई तो अपने दोस्तों को शेयर करे। धन्यवाद।

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